मार्च माह के कृषि संबंधी आवश्यक कार्य
मार्च के महीने में रबी की फसले पक कर तैयार हो जाती है इस समय किसानों को बहुत सी बातों का ध्यान रखना बहुत आवश्यक है। यहां आप जानेगे की इस महीने में आप आपने कृषि कार्यों को आसानी से कैसे करें।
दलहनी फसलें
मार्च माह में चने, मटर और मसूर की फसल पर कीट और रोगों का ज्यादा प्रकोप होता है। चने की फसल में छेदक कीट का प्रकोप भारी मात्रा में होता है, यह पत्तियों और पौधों के कोमल हिस्सों से रस चूसकर उन्हें नुक्सान पहुंचाते है। इस कीट के रासायनिक नियंत्रण के लिए मोनोक्रोटोफॉस 1 लीटर को 600-800 लीटर पानी में मिलाकर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव कर दे या फिर इसके स्थान पर 250 ml इमामेक्टिन बेंजोएट का भी उपयोग कर सकते है।
मसूर की फलियों पर इस कीट के प्रभाव को कम करने के लिए फेनवालरेट रसायन की 750 मिली लीटर या मोनोक्रोटोफास 1 लीटर को 600 -800 लीटर पानी में घोलकर छिड़क दे। साथ ही मटर और मसूर की खेती में चेपा कीट को नियंत्रित करने के लिए मैलाथियान की 50 इ सी की 2 लीटर मात्रा या फारमेथियन 25 इ सी की 1 लीटर मात्रा को 600 -700 लीटर पानी में मिलाकर प्रति हेक्टेयर में छिड़काव करे।
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मार्च माह यानी ग्रीष्मकाल में उड़द और मूँग की भी बुवाई की जाती है। मूँग और उड़द की विभिन्न किस्में है जिनकी बुवाई मार्च में की जाती है। उड़द की कुछ उन्नत किस्में इस प्रकार है: आजाद उड़द, पंत उड़द 19, पी डी यू 1, के यू 300, के यू जी 479, एल यू 391 और पंत उड़द 35। इसके अलावा मूँग की भी कुछ उन्नत किस्में है मेहा, मालवीय, जाग्रती, सम्राट, पूषा वैशाखी और ज्योति आदि है।
गेहूँ और जौ
इस समय गेहूँ और जौ की खेती में किसान को समय समय पर सिंचाई का कार्य करते रहना चाहिए। गेहूँ और जौ की खेती में 15 -20 दिन के अंतराल पर खेत में पानी लगाया जाना चाहिए। लेकिन ध्यान रहें खेत में सिंचाई का कार्य कभी तेज हवाओं के दौरान न करें। तेज हवाओं के दौरान सिंचाई का कार्य किया जाता है, तो इससे फसल के गिरने का डर रहता है। बदलते मौसम के दौरान गेहूँ और जौ में पीला रतुआ रोग होने की ज्यादा संभावनाएं रहती है। यदि गेहूँ की फसल में आपको काले रंग पुष्क्रम दिखाई दे तो उन्हें तोड़कर फेंक दे या फिर मिटटी में अच्छे से दबा दे।
ज्यादा तापमान बढ़ने की वजह से गेहूँ की पीली पत्तियां काली धारियों वाली पत्तियों में बदल जाती है। किसान इस रोग की रोकथाम के लिए प्रोपीकोनजोल 25 इ सी की 1% की दर का छिड़काव करें। यदि रोग का प्रकोप ज्यादा होता है, तो इसका फिर से छिड़काव किया जा सकता है। इस रासायनिक दवा का छिड़काव करनाल बंट रोग को भी नियंत्रित करने के लिए किया जाता है।
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यदि गेहूँ की फसल में माहू रोग लगता है तो 2 मिली लीटर डाइमेथोएट या 20 ग्राम इमिडाक्लोप्रिड को 1000 लीटर पानी में मिलाकर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव कर दे। यदि प्रकोप ज्यादा देखने को मिलता है तो इसका फिर से छिड़काव किया जा सकता है।
ग्रीष्मकाल की चारा फसलों की बुवाई
पशुओं के चारे के लिए किसानों द्वारा ग्रीष्मकाल में चारा फसलें उगाई जाती है जैसे ग्वार, लोबिया, ज्वार, मक्का और बाजरा। इस मौसम में चारा फसलें आसानी से उगाई जा सकती है। चारा फसलों की अच्छी पैदावार के लिए किसानों को सही बीज का चयन करना चाहिए। बुवाई से पहले किसान बीज का उपचार कर ले। बीज उपचार के लिए किसान 1 किलो बीज में 2.5 ग्राम थीरम और बाबिस्टीन का उपयोग कर सकता है।
बरसीम में बीज उत्पादन
बरसीम एक चारा फसल हैं, जिसे मुख्यत पशुओं के चारे के लिए उगाया जाता है। मार्च के दूसरे सप्ताह से बरसीम की कटाई बंद कर देनी चाहिए। यदि आप बरसीम का बीज बनाना चाहते हो तो खेत में नमी खत्म न होने दे। जब तक बरसीम में फूल आये और उसमे दाना न पड़े तब तक उसमे सिंचाई करनी चाहिए। बरसीम में दाना पड़ने के बाद, पौधों पर सूक्ष्म पोषक तत्वों के मिश्रण का छिड़काव किया जा सकता है। इससे बीज की अधिक पैदावार होती है। बरसीम में फूल आने के बाद उसमे खरपतवार जैसी परेशानियां भी देखने को मिलती है, खरपतवार के पौधों को उसी समय उखाड़ कर फेंक दे।
गन्ने की बुवाई
मार्च के माह में उत्तरी भारत में गन्ने की खेती की जाती है। गन्ने की खेती करने के लिए गन्ने के बीज टुकड़ो का रोग रहित रहना जरूरी है। पेड़ी का बीज उपयोग करने से फसल में रोग लगने की ज्यादा संभावनाएं रहती है। इसलिए बुवाई से पहले गन्ने के बीज टुकड़ो का उपचार कर ले। बीज उपचार करने के लिए किसान 2 ग्राम बाबिस्टीन में गन्ने के बीज टुकड़ो को 15 मिनट तक भिगो कर रखे।
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रबी की फसल की कटाई के बाद किसान भूमि की उर्वरकता को बढ़ाने के लिए हरी खाद वाली फसलों की बुवाई कर सकते है। हरी फसलों में सम्मिलित है ढेंचा, सनई, लोबिया और ग्वार। किसानों द्वारा हरी खाद के लिए ज्यादातर दलहनी फसलें उगाई जाती है। यह फसलें मिट्टी की भौतिक दशा को सुधारने के साथ साथ मिट्टी में जीवांश की मात्रा को भी बढ़ाती है। हरी खाद के प्रयोग से दूसरी फसल में कम खाद की जरूरत पड़ती है।